लियोंन त्रात्सकी
हर शासक वर्ग अपनी संस्कृति का निर्माण करता है, और उसी से चलते अपनी कला का भी. इतिहास हमें क्लासिकीय पुरातन(classical antiquity) और पूरब की गुलामी-व्यवस्था से पैदा होने वाली संस्कृतियों का ज्ञान देता है. वह हमें मध्ययुगीन यूरोप की सामंती संस्कृति और वर्तमान की और बुर्जुआ संस्कृति ( जो अभी दुनिया पर राज करती है) के बारे में भी बताती है. इससे यह निष्कर्ष निकलती है कि सर्वहारा वर्ग को भी अपनी संस्कृति और अपनी कला का निर्माण करना पड़ेगा.
पर सवाल सतही स्तर पर जितना सरल दिखाई देता है उससे ज्यादा कठिन है. वे समाज जिनमे गुलामो के मालिक ही शासक वर्ग हुआ करते थे वे कई सदियों तक अस्तित्व में रहे. वही बात सामंतवाद के बारे में भी कहा जा सकता है . बुर्जुआ समाज भी- अगर उसकी गिनती उसके खुली और कोलाहलभरी अभिव्यक्ति के समय यानि कि पुनर्जागरण (Renaissance) के समय से किया जाये - पांच शताब्दियों से अस्तित्मान है. हालाँकि उन्नीसवीं सदी तक या फिर ज्यादा सटीक रूप से कहे तो उन्नीसवी सदी के द्वितीय भाग तक उसकी पूर्ण विकास नहीं हो पाया था. इतिहास बताता है कि एक नए शासक वर्ग के अनुरूप एक नयी संस्कृति की निर्माण में काफी समय लगता है और वह अपनी पूर्ण अवस्था में तभी पहुचती है जब वह वर्ग अपनी राजनेतिक पतन की और अग्रसर होने वाला होता है.
हर शासक वर्ग अपनी संस्कृति का निर्माण करता है, और उसी से चलते अपनी कला का भी. इतिहास हमें क्लासिकीय पुरातन(classical antiquity) और पूरब की गुलामी-व्यवस्था से पैदा होने वाली संस्कृतियों का ज्ञान देता है. वह हमें मध्ययुगीन यूरोप की सामंती संस्कृति और वर्तमान की और बुर्जुआ संस्कृति ( जो अभी दुनिया पर राज करती है) के बारे में भी बताती है. इससे यह निष्कर्ष निकलती है कि सर्वहारा वर्ग को भी अपनी संस्कृति और अपनी कला का निर्माण करना पड़ेगा.
पर सवाल सतही स्तर पर जितना सरल दिखाई देता है उससे ज्यादा कठिन है. वे समाज जिनमे गुलामो के मालिक ही शासक वर्ग हुआ करते थे वे कई सदियों तक अस्तित्व में रहे. वही बात सामंतवाद के बारे में भी कहा जा सकता है . बुर्जुआ समाज भी- अगर उसकी गिनती उसके खुली और कोलाहलभरी अभिव्यक्ति के समय यानि कि पुनर्जागरण (Renaissance) के समय से किया जाये - पांच शताब्दियों से अस्तित्मान है. हालाँकि उन्नीसवीं सदी तक या फिर ज्यादा सटीक रूप से कहे तो उन्नीसवी सदी के द्वितीय भाग तक उसकी पूर्ण विकास नहीं हो पाया था. इतिहास बताता है कि एक नए शासक वर्ग के अनुरूप एक नयी संस्कृति की निर्माण में काफी समय लगता है और वह अपनी पूर्ण अवस्था में तभी पहुचती है जब वह वर्ग अपनी राजनेतिक पतन की और अग्रसर होने वाला होता है.